वीर्यरक्षण
वीर्यरक्षण से पहले ब्रह्मचर्य क्या होता ह? यह पढ़े ब्रह्मचर्य क्या है ? part-1
वीर्य की
रक्षा को वीर्यरक्षण कहते है, खुद पर संयम रखना ब्रह्मचर्य कहलाता है।
ब्रह्मचर्य का पालन करना ही वीर्य रक्षण कहलाता
है
वीयर्रक्षण ही जीवन है
वीर्य इस शरीररूपी नगर का एक तरह से राजा ही
है | यह वीयर्रूपी राजा यदि बलवान् है तो
रोगरूपी शत्रु कभी
शरीररूपी नगर पर आक्रमण नही करते | जिसका वीयर्रूपी राजा निबर्ल है, उस शरीररूपी नगर को कई रोगरूपी शत्रु आकर घेर
लेते हैं
वीर्यनाश ही मृत्यु है
वीर्य कैसे बनता है ?
आयुर्वेद के मतानुसार मनुष्य के शरीर
में सात धातु होते हैं-
जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।
आइए
जानें वीर्य बनने की प्रक्रिया-भोजन-रस-रक्त-मांस-मेदा-अस्थि-मज्जा-वीर्य। भोजन
से रस बनने में 5 दिन लगते
हैं फिर रस से रक्त बनने में 5 दिन लगते हैं। आगे 5-5
दिन का क्रम चलता है, तब कहीं जाकर अन्त में
वीर्य बनता है। इस प्रकार भोजन से वीर्य तैयार होने में 35 दिन
लग जाते हैं।
मनुष्य
एक दिन में औसतन 800 ग्राम भोजन करता है तो 35 दिन बाद आधा ग्राम
वीर्य तैयार होता है। 40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है। एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है जो कि 30 दिन के 24
कि.ग्रा. भोजन से तैयार होता है।
कामवासना रोगी बनाने
वाला है, बहुत बुरी
तरह रोगी करने वाला है | बुरी तरह मारने वाला है | यह टेढ़ी चाल चलता है, मानिसक शक्तियों को नष्ट कर
देता है | शरीर में से स्वास्थ्य, बल,
आरोग्यता आदि को खोद-खोदकर बाहर फेंक देता है | शरीर की सब धातुओं को जला देता है | आत्मा को मिलन
कर देता है शरीर के वात, पित, कफ को दूषित
करके उसे तेजोहीन बना देता है |
वीर्य नाश से व्यक्ति
कि हालत वैसी ही हो जाती ह जैसी गन्ने से रस निकलने के बाद गन्ने की होती है
सृष्टि के लिए मैथुन : एक प्राकृतिक व्यवस्था
शरीर से वीर्य-व्यय यह कोई क्षिणक सुख के लिये
प्रकृति की व्यवस्था नहीं है | सन्तानोत्पि के िलये
इसका वास्तिवक उपयोग है
|
यह सृष्टि चलती रहे, इसके लिए सन्तानोत्पि होना
जरूरी है
सन्तानोत्पत्ति
ओर बात है और कामुकता के फेर में पडक़र अंधाधुंध वीर्य नाश करना बिलकुल भिन्न है।
इस प्रकार के आचरण को संसार के सब विद्वान और विचारकों ने गर्हित तथा मानव जीवन को
नष्ट-भ्रष्ट करने वाला माना है।
शरीर
के बल बुद्धि की सुरक्षा के लिये वीयर्रक्षण बहत आवस्यक है ,
अविवाहित
रहना मात्र ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता।
मैथुन के निम्नलिखित प्रकार शास्त्रों में कहे गये हैं—
स्मरण किसी सुन्दर युवती, स्त्री
या पुरुष के रूप-लावण्य अथवा हाव, भाव,
कटाक्ष एवं श्रृंगार का स्मरण करना,
काम क्रियाओं का स्मरण करना,
अपने, भविष्य
में किसी स्त्री या पुरुष के साथ मैथुन करने का संकल्प अथवा भावना करना,
माला, किसी
सुन्दर स्त्री अथवा पुरुष अश्लील चित्र का स्मरण करना—ये सभी मानसिक मैथुन के अंतर्गत हैं |
श्रवण— गंदे तथा
कामोद्दीपक बातों, गानों को सुनना, स्त्रियों
या पुरुष के रूप-लावण्य तथा अंगो का वर्णन सुनना, उनके हाव, भाव,
कटाक्ष का वर्णन सुनना,
कामविषयक बातें सुनना आदि—ये सभी श्रवणरूप मैथुन के अंतर्गत हैं |
कीर्तन— अश्लील बातों का
कथन, स्त्रियों या पुरुष के
रूप–लावण्य,
यौवन एवं श्रृंगार की प्रशंसा तथा उनके हाव,
भाव, कटाक्ष
आदि का वर्णन, विलासिता का
वर्णन, कामोद्दीपक अथवा गंदे
गीत गाना तथा ऐसे साहित्य को स्वयं पढ़ना और दूसरों को सुनाना तथा कथा आदि में ऐसे
प्रसंगों को विस्तार के साथ कहना—ये सभी कीर्तनरूप
मैथुन के अंतर्गत हैं |
प्रेक्षण— स्त्रियों या
पुरुष के रूप-लावण्य, श्रृंगार तथा
उनके अंगों की रचना को देखना, किसी सुंदरी स्त्री
अथवा पुरुष के रूप या चित्र को देखना, नाटक-सिनेमा
देखना, कामोद्दीपक वस्तुओं के
देखना—यह सभी प्रेक्षण रूप मैथुन
के अंतर्गत हैं
केलि— स्त्रियों या
पुरुषों के साथ हँसी-मजाक करना, नाचना-गाना,
आमोद-प्रमोद करना , गन्दी चेष्टाएँ करना, स्त्रीसंग
करना आदि—ये सभी केलिरूप
मैथुन के अंतर्गत हैं |
श्रृंगार— अपने को सुन्दर
दिखलाने के लिए बाल सँवारना, कंघी करना,
काकुल रखना, शरीर
को वस्त्राभूषणादि से सजाना, इत्र,
फुलेल, लवेंडर
आदि का व्यवहार करना, फूलों की माला
धारण करना, अंगराग लगाना,
सुरमा लगाना, उबटन
करना, साबुन-तेल लगाना,
पाउडर लगाना, दाँतों
में मिस्सी लगाना, दाँतों में सोना
जड़वाना, शौक के लिए बिना
आवश्यकता के चश्मा लगाना, होठ लाल करने के
लिए पान खाना—यह सभी श्रृंगार
के अंतर्गत है | दूसरों के चित्त
को आकर्षण करने के उद्देश्य से किया हुआ यह सभी श्रृंगार कामोद्दीपक है
गुह्यभाषण—
स्त्रियों या पुरुषों के साथ एकांत में अश्लील
बातें करना, उनके रूप-लावण्य ,
यौवन एवं श्रृंगार की प्रशंसा करना,
हँसी-मजाक करना—यह
सभी गुह्यभाषणरूप मैथुन के अंतर्गत है
स्पर्श— कामबुद्धि से किसी स्त्री अथवा पुरुष को स्पर्श करना, चुम्बन करना, आलिंगन करना,कामोद्दीपक पदार्थो का स्पर्श करना आदि यह सभी स्पर्शरूप मैथुन के अंतर्गत है|
स्वामी
शिवानंद जी ने मैथुन के आठ प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है -
1. स्त्रियों को
कामुक भाव से देखना।
2. उन्हें
स्पर्श करना।
3. सविलास की
क्रीड़ा करना।
4. स्त्री के
गुणों की प्रशंसा करना।
5. एकांत में
संलाप करना।
6. कामुक कर्म
का दृढ़ निश्चय करना।
7. तुष्टिकरण की
कामना से स्त्री के निकट जाना।
8. क्रिया
निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया।
इसके अतिरिक्त विकृत यौनाचार से भी वीर्य की भारी क्षति हो जाती है।
हस्तक्रिया (हस्त मैथुन) आदि इसमें शामिल है। शरीर में व्याप्त वीर्य कामुक
विचारों के चलते अपना स्थान छोडऩे लगते हैं और अन्तत: स्वप्रदोष आदि के द्वारा
बाहर आ जाता है। ब्रह्मचर्य का तात्पर्य वीर्य रक्षा से है। यह ध्यान रखने की बात
है कि ब्रह्मचर्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से होना जरूरी है।
स्त्री संग कितनी बार ?
सुकरात से एक व्यक्ति
ने पूछा :
मनुष्य
को स्त्री प्रसंग कितनी बार करनी चाहिए?
जवाब
में सुकरात ने कहा जीवन में एक बार।
व्यक्ति
ने असंतोष व्यक्त करते हुए पूछा कि इतने से संतोष न हो तो?
सुकरात
ने कहा - वर्ष में एक बार।
इससे
भी सन्तुष्टि नहीं हुई तो
माह
में एक बार।
इससे
भी सन्तुष्टि नहीं हुई तो
माह
में दो बार
इससे
भी सन्तुष्टि नहीं हुई तो
सप्ताह
में एक बार
इससे
भी सन्तुष्टि नहीं हुई तो
सुकरात
ने कहा - ‘‘जाओ पहले सिर पर कफन बाँध लो और अपने लिए कब्र खुदवालो फिर चाहे जो भी करना
हो करो।’’